#पहली_बाल_कविता-
■ सूरज सोया, ओढ़ रज़ाई
【प्रणय प्रभात】
दिन उग आया धूप न आई।
चारों तरफ धुंध सी छाई।।
आसमान की गगरी छलकी।
नन्ही-नन्ही बूंदें टपकी।।
हाथ-पांव सब फ्यूज़ हो गए।
पक्षी तक कन्फ्यूज़ हो गए।।
सरदी मां ने लोरी गाई।
सूरज सोया ओढ़ रज़ाई।।
बाल-कविता मेरी विधा नहीं है। फिर भी आज एक चित्र ने पहली बाल कविता लिखवा डाली। पढ़ना चाहें तो बड़े भी पढ़ सकते हैं। कुछ पलों के लिए बच्चों के साथ बच्चा बनना भी मज़ेदार होता है कभी-कभी। तो आप भी कर दो आज से शुरुआत। जीवन की गाड़ी को कुछ देर रिवर्स-गेयर में चलाने की।।