काव्य
कुछ वर्षों पूर्व मेरे जीवन में, एक अद्भुत परिवर्तन शुरू होने लगा।
हिंदी साहित्य के प्रति मेरा चाव, कभी शिष्य-कभी गुरु होने लगा।
भाव के लगाव से आया बदलाव, आज इस जीवन का आधार है।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।
दृश्य, भाव व संकेत सब कुछ, मुझे आँखों के आगे दिखता गया।
तो कलम का हाथ थामकर, मैं बहुत सारी कविताऍं लिखता गया।
उस कलम से लिखा हर काव्य, ‘लोकमान्य’ की श्रेणी में शुमार है।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।
जो काव्य-लेखन की अनंत यात्रा, सतत गति से आगे बढ़ती गई।
तो अन्य साहित्यकार सोच में पड़े, नज़रें भी प्रगति पे गढ़ती गईं।
जिस पर साहित्य की कृपा रहे, वो हर परिणाम के लिए तैयार है।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।
विषय का समुचित विश्लेषण ही, मेरे समस्त काव्य का प्राणत्व है।
समस्या-समाधान का संतुलन ही मेरी कविताओं का मूल तत्त्व है।
साहित्य का समग्र सानिध्य ही, सभी संभावनाओं का सरोकार है।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।
नृत्य व नाटक के समस्त भाव, तन-मन की पीड़ा को बताने लगें।
गीत, संगीत व शायरी बनकर, गुम हुई सारी बातें गुनगुनाने लगें।
यही होती कला की पवित्रता, जिसके साधक सिद्ध कलाकार हैं।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।
समय, प्रकृति व संसार अमर, जन्म और मरण की गति सतत है।
हर किसी को निश्चित मंच मिला, इस सत्य से हर कोई सहमत है।
यहाॅं हर मनुष्य एक पात्र जैसा, नाटकीय मंच ये समूचा संसार है।
जो कलम की नोंक से व्यक्त हो, वो काव्य ही मेरा पहला प्यार है।