पहला खत
पहला खत लिक्खा तुझको, तुझसा कोई हमराज नहीं ।
ढूँढ ढूँढ कर हारी मैं तो , तुझसा कोई आज नहीं।।
तेरे सम्मुख आकर हमने, राज सभी कह डाले हैं।
बन्द पड़ी किस्मत के तूने, खोल दिए सब ताले हैं।।
दर्द भरे सब आँसू पीकर, अदभुत खेल रचाया है।
भटक रही दर दर इस रूह को , अपने पास बुलाया है।।
गूँज रही है अमृत वाणी , हर पल हर क्षण कानों में ।
बात अलग है अब साजों की , बजने वाली तानों में।।
कवच बनाया जो रहमत का , उसकी महिमा क्या गाऊँ।
करूँ चाकरी हर पल तेरी , ऐसा अदभुत वर पाऊँ।।
सदा रहूँ कदमों में तेरे , इक पल भी हो ना दूरी ।
बस मेरी छोटी सी तमन्ना , अब कर दो भगवन पूरी।।
‘माही’ से ‘माही’ का रिश्ता , कोई समझ ना पायेगा ।
जिस दिन खुलकर झूमूँगी मैं , जग पगली बतलायेगा।।
© डॉ.प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला