पहला एहसास.
छोटी छोटी आँखे उजाले का आभास सी कराने लगी थी, दिन और रात चाँद और तारों की छटा आकाश में छाने लगी थी। रिमझिम करती बारिश की बूँदे ठंडक का एहसास कराने लगी थी, पेड़ पौधों में पतझड के बाद नईं कोंपलें आने लगी थी। जीवन के पहले पहले अनबुझे अनसुलझे और उत्सुकता भरी निगाहें डगमगानें सी लगी थी, लडखडाते हुये नन्हे नन्हे कदमें घर से बाहर जाने लगी थी। इस आत्मा रूपी शरीर में हँसी ख़ुशी सुख दुख की भावनायें आने लगी थी, चारों और ज़िंदगी की घटा छाने लगी थी। कितना खुशनुमा होता है दोस्तों ज़िंदगी का पहला एहसास, जैसे बर्फ़ीली पानी की ठंडक में सूरज के किरणों की उजास।
दीपक रावत