पहला अहसास
उसकी मुस्कुराती हुई नम होती आँखें
मेरी सुप्त खुशियों को
अंदर तक भिगोती रही
एक अनजाना अहसास
जो कभी था मेरे भीतर
शायद बचपन के किसी
खिलौने में छोड़ आया था
वही अहसास
फिर एक बार पिघला है
उसके हाथों की तपिश से
फिर एक बार के लिए
मौलिकता को महसूस
किया है मैंने
मेरा अहसास, सिर्फ मेरा
शब्दों में बाँधने की नाकाम
कोशिश
पर ये प्रपात बंधता ही नही
किसी दायरे में
कैसे समेट पाऊंगा
अपने भीतर तक
कही खो न जाये
किसी बेजान कोने में
बचपन के खिलौने सा
पहली बार उपेक्षित वो छत
टपक रही है
मुस्कुराती नमी से
लगता है दूर किसी
क्षितिज से बारिश होगी