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29 Jul 2019 · 1 min read

पहला अहसास

उसकी मुस्कुराती हुई नम होती आँखें
मेरी सुप्त खुशियों को
अंदर तक भिगोती रही

एक अनजाना अहसास
जो कभी था मेरे भीतर
शायद बचपन के किसी
खिलौने में छोड़ आया था

वही अहसास
फिर एक बार पिघला है
उसके हाथों की तपिश से
फिर एक बार के लिए
मौलिकता को महसूस
किया है मैंने

मेरा अहसास, सिर्फ मेरा
शब्दों में बाँधने की नाकाम
कोशिश
पर ये प्रपात बंधता ही नही
किसी दायरे में

कैसे समेट पाऊंगा
अपने भीतर तक
कही खो न जाये
किसी बेजान कोने में
बचपन के खिलौने सा

पहली बार उपेक्षित वो छत
टपक रही है
मुस्कुराती नमी से
लगता है दूर किसी
क्षितिज से बारिश होगी

Language: Hindi
1 Like · 492 Views
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