पहचान
एक बूंद जो आसमा से अचानक छलक पड़ी…
रोती बिलकती धरती पर आ गिरी
मैं अपनो से अलग होकर कहां जाऊगी
अपनी पहचान से दूर होकर ठोकर पाऊगी..
फूलो पर पडूगीं या घास मे
रेत पर गिरूगी या धूल मे मिलूगी
सोंच सोंच घबरा गयी
अचानक हवा के एक झोके से पलट गयी.
हिलते डुलते सागर मे जा मिली
सीप कब से इंतजार मे थी, उसके अस्तित्व को पहचान दिलाने में
वही एक बूंद मोती बनकर अपनी पहचान बना गयी…