पहचान है बाकी…!!!!
अरमानों का टूटा हुआ खाली मकान है बाकी…
विस्मृति की बाहों में यादें हैं ,
और कुछ निशान है बाकी…
किस गुरुर में जी रहा है वो –
वक्त को भी वक्त लगता है,
टूटेगा जो बचा हुआ उसका गुमान है बाकी…
बीच मझधार में खड़ी हूं,
अभी तो पार करना इम्तिहान है बाकी…
हौसलों की सिर्फ उड़ान ही तो भरी है,
अभी तो मिलनी पहचान है बाकी….!!!!
-ज्योति खारी