पसीना
माथे से न बहे पसीना
ऐसा जीना भी क्या जीना।
बिन श्रम जीवन कैसा जीवन
स्वेद बिंदु को जाने जन जन।
श्रम में ही सौभाग्य भरा है
कोई कार्य भी नहीं बुरा हैं।
भरी दोपहरी श्रमरत है जो
गर्वीला उनका है सीना।माथे से
खाएं अन्न स्वयं का अर्जित
जिए कभी न जीवन कर्जित।
श्रम का मूल्य उसी ने जाना
स्वावलंबन को जिसने माना।
होता दु:खी वहीं जीवन में
जिसने धन औरों का छीना।माथे से
अपनाएं सदकार्य सभी अब
श्रेष्ठ बनेगा जीवन ये तब।
मेहनत को निशिदिन अपनाएं
दिन ये यूं ही गुजर न जाएं।
श्रम बिंदु ही असली मोती
इससे बड़ा न कोई नगीना।माथे से
रामनारायण कौरव