पश्चाताप
सुनीता आज बहुत खुश थी। जब से उसकी बेटी सुधा और दामाद रोहित की अमेरिका से आने की खबर आई थी उसके पास जमीन पर नहीं पड़ रहे थे ।
सुधा शादी के दो साल बाद घर आ रही थी ,
हालांकि उसके आने में अभी दस दिन थे , फिर भी वह आज से ही सभी तैयारियां उसके स्वागत के लिए कर रही थी। उसने घर की साफ सफाई एवं सभी पुराने सामान को नए सामान में बदल देने का सोचा था। उसने दीवारों एवं दरवाजों का रंग रोगन करने का भी निश्चय कर लिया था।
उसने खिड़की एवं दरवाजों के नए पर्दे बदल देने एवं बिस्तरों की सभी चादरें एवं गिलाफ बदल देने के लिये खरीद लिस्ट बना रखी थी।
उसने अपने पति महेश को आगाह कर दिया था कि सुधा के आने पर जी खोलकर खर्च करे एवं किसी भी तरह की कटौती न करने का मन बना ले। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि सुधा को उनकी आर्थिक स्थिति का तनिक भी आभास हो। जितने भी दिन वह वहां रहे उसकी मांग में कोई कमी न हो और वह खुश रहे ।
रोहित भी पहली बार ससुराल आ रहा था अतः उसकी आवभगत में कोई भी कमी नहीं होना चाहिए थी ।
उसने नौकरानी को घर की पूरी साफ सफाई करने का आदेश दे दिया था।
सुधा सुनीता और महेश की इकलौती बेटी थी, जिसे उन्होंने उससे बड़े प्यार से पाला था।
सुधा बचपन से ही मेधावी थी , हमेशा वह कक्षा में अव्वल रहती थी।
इसके अतिरिक्त उसकी चित्रकला एवं गायन में रुचि थी। स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लेकर उसने अनेक पुरस्कार प्राप्त किए थे।
वार्षिक अंतर विद्यालय खेल प्रतियोगिता में उसने बैडमिंटन में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
रोहित महेश के मित्र राजेश का होनहार बेटा था। जिसने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए अमेरिकन यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर उच्च शिक्षा पूरी की , उसके पश्चात् वहीं उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई।
सुनीता और महेश रोहित को बचपन से जानते थे। वह भी अपने पिता के साथ उनके घर आता जाता रहता था ।
रोहित की सुधा से बचपन से ही दोस्ती बन गई थी। रोहित एक संस्कारी युवक था। सुनीता और महेश को वह सुधा से शादी के लिए पसंद था।
उन्होंने इस विषय में सुधा से राय जाननी चाही, क्योंकि सुधा रोहित को बचपन से ही जानती थी, और उसके व्यवहार एवं आचार विचार से भलीभांति परिचित थी, अतः उसने हामी भर दी।
राजेश एवं उसकी पत्नी नंदिनी को भी सुधा बहुत पसंद थी।
इस प्रकार एक शुभ मुहूर्त पर रोहित सुधा की शादी संपन्न हुई। शादी के पश्चात् मैरिज सर्टिफिकेट , सुधा का पासपोर्ट एवं वीसा, इत्यादि की औपचारिकता पूर्ण करने के बाद रोहित सुधा के साथ अमेरिका चला गया।
शादी के बाद , नौकरी में व्यस्त रहने एवं शादी के समय अधिक छुट्टी ले लेने के कारण रोहित को दो साल बाद ही भारत जाने की छुट्टी मिल सकी।
इस बार वह एक माह की छुट्टी लेकर आया था। जिसमें कुछ दिन वह अपने मां बापू के साथ बिताना एवं कुछ दिन ससुराल में सुधा के मां बाबूजी के सानिंध्य में बिताना चाहता था।
फिर कुछ दिन अपने पुश्तैनी गांव जाकर अपने सभी रिश्तेदारों का परिचय सुधा से कराना चाहता था , जिससे जो भी रिश्तेदार उसकी शादी में आ नहीं सके थे , वे सुधा से भलीभांति परिचित हो जाऐं और सुधा भी उनको जान सके।
बड़े जतन से घर की साफ सफाई रंग रोगन एवं नवीन सामग्रियों से घर सजा कर महेश और सुनीता सुधा और रोहित के आगमन का इंतजार करने लगे।
आखिरकार इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और वह दिन आ गया जब रोहित और सुधा ने घर में पदार्पण किया।
सुधा आते ही सुनीता से लिपट गई और सुनीता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
रोहित ने आते ही सुनीता और महेश के चरण स्पर्श किए। फ्रेश होने के बाद चाय नाश्ते पर बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा रोहित ने कहा वह एक महीने की छुट्टी पर आया है ।वह एक हफ्ते बाद घर जाकर माता पिता को लेकर पुश्तैनी गांव जाएगा वहां कुछ दिन रहकर फिर वापस अमेरिका लौट जाएगा।
कंपनी ने उसके कार्य से प्रसन्न होकर उसे कोऑर्डिनेटर की पदवी पर पदोन्नत किया है। अतः कार्यभार ज्यादा होने की वजह से अधिक नहीं रुक सकता था।
रोहित और सुधा के पास जितना वक्त था , उसका वे सदुपयोग करना चाहते थे। अपने खास दोस्तों से मिलकर वे कुछ मंदिर एवं दर्शनीय स्थल भी घूमना चाहते थे। इस कारण उनका कार्यक्रम बहुत व्यस्त था।
सुनीता ने सुधा की पसंद की मिठाइयां बनाकर रखीं थीं , उस दिन उसने सुधा की पसंद का खाना भी बनाया। रोहित को खाना बहुत पसंद आया उसने सुनीता की पाक कौशल की तारीफ के पुल बांध दिए।
दूसरे दिन रोहित और सुधा , रोहित के मित्र रमेश और उसकी पत्नी प्रिया के साथ उनकी कार में पास के एक मंदिर एवं दर्शनीय स्थल के लिए रवाना हो गए , और तीसरे दिन रात तक आने का वादा कर गए।
तीसरे दिन देर रात तक वापस आ गए।
चौथे दिन रोहित और सुधा देर से उठे तब तक चाय नाश्ता तैयार था। नाश्ते में सुनीता ने राजस्थानी प्याज की कचौड़ी एवं मावे की जलेबियाँ बनाईं , जिसे रोहित ने बहुत पसंद किया।
नाश्ते के बाद सुनीता और सुधा ढेर सारी बातें करतीं रहीं। रोहित अपने लैपटॉप पर कुछ काम करने में व्यस्त हो गया।
दोपहर खाने के बाद थोड़ा विश्राम करने के बाद सुनीता एवं सुधा की शॉपिंग का प्रोग्राम बना, उसके बाद सिनेमा देखने का प्रोग्राम था। रोहित ने कहा आप दोनों जाकर आओ तब तक मैं कुछ अपने ऑफिस का काम लैपटॉप में कर लेता हूं।
सुनीता और सुधा ने उस दिन बहुत शॉपिंग की , शॉपिंग में इतनी देर हो गई कि सिनेमा देखने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा।
पांचवें दिन सुधा के चाचाजी जो उसी शहर में थोड़ी दूर पर रहते थे के यहां उनका निमंत्रण था।
अतः रोहित और सुधा चाचाजी के घर टैक्सी लेकर रवाना हो गए।
सुधा , चाचाजी के चार वर्षीय जुड़वें पोतों सोनू और मोनू के लिए ढेर सारी चॉकलेट और खिलौने अमेरिका से लेकर आई थी । सपना भाभी के लिए परफ्यूम और ब्यूटी क्रीम भी लाई थी।
चाचाजी के घर उन्हें देखकर सब लोग बहुत खुश हुए। सुधा ने चाचीजी एवं सपना भाभी को अमेरिका में उसके अनुभव बतलाए।
सपना भाभी ने अपने कुशल हाथों से बड़ा स्वादिष्ट खाना बनाया था।
अजय भैया और रोहित में काफी देर तक चर्चा होती रही।
सुधा की सहेली मालती के यहां डिनर का निमंत्रण था , अतः शाम को चाचाजी से विदा लेकर टैक्सी से मालती के घर पहुंचे।
सुधा को काफी समय बाद देखते ही मालती भाव विभोर होकर उससे लिपट गई ।
मालती ने अर्थशास्त्र में एम.ए पी. एच. डी करने के पश्चात् लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होकर शासकीय महाविद्यालय में सह प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थी।
वह अविवाहित थी।
मालती घर डिनर करने के पश्चात् सुधा और रोहित देर रात तक घर पहुंचे।
छठवें दिन सुधा के ससुराल जाकर रहने का कार्यक्रम था वहां कुछ दिन रहकर रोहित के मां बापू के साथ पुश्तैनी गांव जाने का तय किया गया था।
सवेरे उठकर दिनचर्या एवं चाय नाश्ते के उपरांत नहा धोकर निकलना था।
रोहित शीघ्र ही नहा धोकर तैयार हो गया और सुधा के तैयार होकर आने का इंतजार करने लगा।
सुधा नहा धोकर पूजा पाठ कर तैयार होने लगी ,
तभी उसको लगा उसकी हीरे की अंगूठी जो उसने नहाने से पहले ड्रेसिंग टेबल पर रखी थी वहां से गायब है , उसने अंगूठी ढूंढने की बहुत कोशिश की ड्रावर में , टेबल के नीचे , चारों तरफ छान मारा परंतु अंगूठी नदारद थी।
वह घबरा गई क्योंकि अंगूठी बहुत कीमती थी , जिसे उसके जन्मदिन पर रोहित ने भेंट की थी।
इसके अलावा अंगूठी खोने से अपशकुन होने के विचार भी उसके मस्तिष्क में आ रहे थे।
उसने अपनी परेशानी सुनीता को बतलायी। सुनीता ने भी अंगूठी ढूंढने की काफी कोशिश की परंतु अंगूठी मिली नहीं। उसने समय की गंभीरता को समझते हुए सुधा को सलाह दी कि अब इसका जिक्र रोहित से ना करें ; नहीं तो बात का बतंगड़ बन जाएगा । वह ढूंढने की पूरी कोशिश करेगी और इस समस्या का कोई न कोई हल जरूर निकालेगी अतः चिंता ना करे। अंगूठी मिलने पर उसे सूचित करेगी।
वह इस बात को थोड़ी देर के लिए भुलाकर खुशी खुशी ससुराल जाए एवं चिंतित भाव चेहरे पर प्रकट ना होने दें , जिससे लोग इसका अन्यथा अनुमान लगाएं।
रोहित और सुधा की जाने के पश्चात् , सुनीता ने यह बात महेश को बताई ।
महेश ने कहा मुझे लगता है अंगूठी किसी ने चुरा ली है , और मेरा शक तो नौकरानी कमला पर जाता है , उसके अलावा कोई भी बाहर का आदमी बेडरूम तक नहीं जा सकता।
सुनीता ने भी विचार किया , जबसे सुधा आई है, झाड़ू ,पोछा , बर्तन मांजने , आदि का काम बढ़ जाने से कमला अपने साथ अपने बहन की लड़की पिंकी को भी अपने मदद के लिए साथ लेकर आती है।
कहीं यह पिंकी की कारस्तानी ना हो , वही सवेरे से सब कमरों की झाड़ू लगा रही थी।
सुनीता और महेश ने आपस में विचार विमर्श करने के बाद यह तय किया कि कमला को बुला कर एक बार पूछताछ अवश्य की जावे।
हालांकि कमला कई वर्षों से उनके यहां काम कर रही और कभी भी उन्हें उसकी ईमानदारी पर शक नहीं हुआ था। पैसों की जरूरत होने पर वह उधार मांग लेती थी। और कभी भी उसने अलमारी में रखे पैसों को हाथ नहीं लगाया था। परंतु उसके साथ आने वाली पिंकी के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। अतः उनका शक पिंकी पर जाता था ।
अगले दिन जब कमला आई तो पिंकी उसके साथ नहीं थी। सुनीता ने कमला से जब पूछा पिंकी तुम्हारे साथ क्यों नहीं आई ? , तो उसने कहा उसकी मां की तबीयत कुछ खराब है इसलिए वो घर पर रुक गई है।
सुनीता का माथा ठनका उसने सोचा कमला झूठ बोल रही है , वह जानबूझकर पिंकी को साथ लेकर नहीं आई , क्योंकि उसे डर है कि दबाव डालने पर पिंकी चोरी का राज ना खोल दे।
सुनीता ने जब पूछा कि तुमने सुधा के अंगूठी कहीं देखी तो नहीं है? कल से वह मिल नहीं रही।
तो कमला ने कहा उसे अंगूठी के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
सुनीता को लगा कमला अंगूठी चुराकर नादान बनने का नाटक कर रही है।
फिर उसने कहा तुम सच सच बताओ कहीं पिंकी ने गलती से उठा ली हो ,और तुम बताने से डर रही हो कि उसे हम चोर समझेंगे ।
हम ऐसा कुछ नहीं समझेंगे हम समझते हैं की पिंकी छोटी बच्ची है और बच्चे कभी-कभी छोटी मोटी गलतियां कर बैठते हैं , जिनका कभी बुरा नहीं माना जाता और माफ कर दिया जाता है।
कमला ने कहा माताजी हमने ना तो आपकी अंगूठी देखी है ना उसका हमें पता है , आप हमारी बच्ची पर जबरदस्ती चोरी करने का इल्जाम मत लगाओ।
हम लोग गरीब जरूर है परंतु चोर नहीं, हम भूखे पेट सो लेंगे , मांग कर खा लेंगे पर कभी चोरी नहीं करेंगे।
हम आपकी नौकरी नहीं कर सकते क्योंकि आपको हमारे ऊपर विश्वास नहीं रहा है ।
फिर भी सुनीता को उस पर विश्वास नहीं हो रहा था और सोच रही थी कि कमला बहुत शातिर है और वह फिल्मी डायलॉग बाजी पर उतर आई है।
अतः उसने महेश को बुलाया , महेश ने भी उसको पुलिस का भय दिखाकर सच उगलवाने की कोशिश की , परंतु कमला टस से मस नहीं हुई।
कमला ने कहा साहब हमारा हिसाब कर दो , कल से हम काम पर नहीं आएंगे।
महेश ने कहा ठीक है , कल तुम पिंकी को लेकर आओ हम तुम्हारा हिसाब कर देंगे।
महेश एक बार वह पिंकी से बात करना चाहता था , जिससे वह सच का पता लगा सके।
अगले दिन कमला पिंकी को लेकर आई । महेश ने पिंकी से पूछताछ की परंतु कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
महेश में कमला का हिसाब कर दिया और वह चली गई।
इसके एक हफ्ते बाद एक दिन जब महेश सवेरे उठकर बाथरूम में ब्रश कर रहा था तभी बिजली चली गई और बाथरूम में अंधेरा हो गया। तभी महेश ने देखा कि वाश बेसिन के कोने से एक रोशनी सी निकल रही है। तभी बिजली आ गई ।
बिजली आने पर महेश ने वाशबेसिन के उस कोने की तरफ देखा जिसमें से रोशनी आ रही थी।
दरअसल वाश बेसिन के उस कोने से सटी दीवार के बीच एक संध थी , झांककर देखने पर महेश को उसमें कुछ फंसा सा नजर आया , महेश ने पेचकस से फंसी चीज को निकाला तो पता लगा वह एक हीरे की अंगूठी थी। जिसमें जड़ा हीरा ही अंधेरे में रोशनी बिखेर रहा था।
यह वही अंगूठी थी जो सुधा ने खो दी थी।
महेश के मस्तिष्क में शक के बादल छंट गए , और वस्तुःस्थिति स्पष्ट हो गई। दरअसल सुधा ने अंगूठी ड्रेसिंग टेबल पर ना रखकर वाशबेसिन के ऊपर नहाने की पूर्व उतार कर रखी थी , जो ढुलककर वाशबेसिन और दीवार के बीच संध में जा फंसी थी। तैयार होने की जल्दी में सुधा यह भूल गई उसने अंगूठी उतार कर कहां रखी थी।
चूंकि अंगूठी संध में छुपी थी , इसलिए वह किसी को नजर नहीं आयी।
महेश का मन आत्मग्लानि और क्षोभ से भर गया है , कि बिना सोचे समझे उसने एक गरीब निरीह एवं ईमानदार नौकरानी पर संदेह कर उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई थी।
सुनीता को जब उसने यह बताया तो उसे भी नौकरानी के प्रति अपने व्यवहार का बहुत दुःख हुआ , कि उसने अपने शक्की स्वभाव के कारण एक मेहनती ईमानदार नौकरानी को खो दिया था।
महेश और सुनीता के ह्रदय अज्ञात अपराध बोध से भारी हो गये।