पश्चाताप के आसू
वो पश्चाताप के आँसू थे,
दामन भिगो जाते मेरा।
जितने घाव दिए तुमने,
निःस्वार्थ भाव से सेवा का,
वो पुरस्कार था मेरा।
आदर और सम्मान के बदले,
प्यार और निष्ठा के बदले,
तिरस्कार और अपमान,
निश्चित भाग्य था मेरा।
कालचक्र ने क्रूर रूप दिखलाया,
चुपके से तुमको दहलाया।
बेबस नयना बार बार,
अपनी त्रुटियां करें स्वीकार।
धन्य हुई मैं असंख्य बार,
पश्चाताप से बढकर,
नहीं कोई उपहार मेरा।
ज़ख्मों को शीतल कर जाता,
वो सहृदय मनुहार तेरा।