पवित्र
मंदिर तुम भी जाते हो , मंदिर हम भी जाते हैं।
गंगा तुम भी नहाते हो, गंगा हम भी नहाते हैं।
अन्न तुम भी खाते हो, अन्न हम भी खाते हैं।
पानी तुम भी पीते हो, पानी हम भी पीते हैं।
जैसे तुम्हारा जन्म हुआ, वैसे हमारा जन्म हुआ है।
खून तुम्हारा भी लाल है, खून हमारा भी लाल है।
फिर तुम पवित्र और हम अपवित्र कैसे हो गए।
हम बदबूदार और तुम इत्र कैसे हो गए।
हमारे छूने से तुम्हारी मटकी अपवित्र हो गई।
तो तुम्हारे छूने से मैं पवित्र क्यों नहीं हुआ।
अपनी इस सड़ी-गली मानसिकता में सुधार करो।
इंसान हो तो इंसान जैसा व्यवहार करो।
वरना एक दिन ऐसा आएगा।
तुम्हारी पवित्र मिट्टी को कोई हाथ नहीं लगाएगा।
-रमाकान्त चौधरी
उत्तर प्रदेश