” पवित्र रिश्ता “
” पवित्र रिश्ता ”
घरवालों की रजामंदी की मोहर से
दो जन मिलते अनजानी डगर पर
शर्मा शर्मी में हो जाती फिर सगाई
बातचीत शुरू होती गोद भराई पर,
बहुत कम पहचानते एक दूजे को
शकल दिखाई दे आपस में शादी पर
शुरूआती दिन तो ऐसे ही गुजर जाएं
शादी की रीति रिवाजों का पालन कर,
शादी के घर से जब रिश्तेदार हो रवाना
तब घूमने जाएं नवविवाहित हनीमून पर
दोनों की अलग अलग होती है परवरिश
निकल पड़े आज अनजाने सफ़र पर,
इसी यात्रा में जानना शुरू करें आपस में
दिनचर्या शुरू होती फिर वापिस घर आकर
नए माहौल में फिर ढलती जाती विवाहिता
लेती वह सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर,
एक पवित्र रिश्ता पति पत्नी के बीच पनपता
परिवार टिकता फिर इसी रिश्ते की धूरी पर
एक दूजे के दुःख सुख के प्रगाढ़ साथी बनते
खरे उतरते दो तन एक मन की कहावत पर,
आपस में सामंजस्य स्थापित कर दोनों चलते
मूक सहमति जताते एक दूजे के निर्णय पर
पूनिया की आखों के तारे वो बन कर दिखाते
शुक्र भगवान का इस रिश्ते रूपी सुंदर रचना पर।
Dr.Meenu Poonia jaipur