पल
पल
कोई मनमोहक पल
ख़िज़ाँ में भी
प्रफुल्लित
गुलजार चमन
खिला देता है
फिज़ा हो जाता है।
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कोई नि:सगी पल
किये देता है
चहलपहल
खैर-भैर
गहमागहमी में भी
नितांत एकांक ।
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कोई आतुर पल
कोई कुछ
बेहद जरूरी
कोई कुछ
बेशकीमती
नजर अंदाज
कर बैठता है
सिर धुनता है।
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कोई चेष्टाहीन पल
मेहनतकशी
कामयाब उजरत
के बीच
जागते में सो जाता है
शेखचिल्ली हो जाता है।
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पल हैं
पलक झपकते
फिसल जाता हैं
तो कोई
पलकों में बस जाता हैं
संगीता बैनीवाल