पल भर का साथ
पल भर का साथ पल में निभाकर चले गए
आए वो और दिल को दुखाकर चले गए
मेहमान थे वो रुकते भला और कितने दिन
दो चार घड़ी वक़्त बिताकर चले गए
अरमान,ख्वाब, खुशियाँ,वो जज्बात और गम
सामान एक-एक उठाकर चले गए
यादें न पीछा कर सकें शायद इसीलिये
कदमों के भी निशान मिटाकर चले गए
कुछ लोग जो कि दिल के बहुत ही करीब थे
मेले में हाथ हमसे छुड़ाकर चले गए
हमको हँसाने आए थे लेकिन गजब हुआ
दामन खुद आँसुओं से भिगोकर चले गए
कहते थे साथ चलना है ताउम्र सफ़र में
पर ट्रेन में वो हमको बिठाकर चले गए
अंतिम समय में रोए फूट-फूटकर के फिर
जलती चिता में हमको लिटाकर चले गए
खुशबू बिखेरी फूलों ने बिखरे भी खुद मगर
जीने का हुनर हमको सिखाकर चले गए