पलकों से रुसवा हुए, उल्फत के सब ख्वाब ।
पलकों से रुसवा हुए, उल्फत के सब ख्वाब ।
रुखसारों पर रह गए, वादों के सैलाब ।
घूंट’- घूँट पीते रहे, तन्हाई में जाम –
तारीकी ज्यों- ज्यों बढ़ी , बढ़ते गए अजाब ।
सुशील सरना / 26-3-24
पलकों से रुसवा हुए, उल्फत के सब ख्वाब ।
रुखसारों पर रह गए, वादों के सैलाब ।
घूंट’- घूँट पीते रहे, तन्हाई में जाम –
तारीकी ज्यों- ज्यों बढ़ी , बढ़ते गए अजाब ।
सुशील सरना / 26-3-24