पर-पीड़ा सिखाने आती है
**जब पीर पराई हो,
वैसे घूमती आई हो,
विचलित नहीं होता कोई,
परीक्षा की घड़ी,
परिणाम सुनाने आई हो,
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सामने दिखे मौत,
हँसते हँसते गले लगाया हो,
वह मौत नहीं जीवंत है,
इतिहास बनाने आई हो,
मौत नहीं तांडव है,
हमें जगाने आई हो,
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जन्म नहीं हुआ जागरण में,
जीवन करो साकार,
छूट जाएं सब विषय-विकार,
हर पल हो आजादी,
जीते जी दूर करें सब व्याधि,
फिर मौत नहीं जीवन सफल हमारा है,
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डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,