पर उसकी याद अब जाने क्यूॅं आती है
उससे ज़ुदा हुए तो ज़माना बीत गया,
पर उसकी याद अब जाने क्यूॅं आती है।।
टूटे दिल पे उसकी मुस्कान क्यूं आती है,
उसकी याद ना जाने मुझे क्यूं सताती है।।
उसके बिन दिन तो गुजरता नहीं फिर,
ना जाने मुझे रात आजमाने क्यूं आती है।।
उसकी हर ऐक निशानी से दूर जाता हूं,
फिर वो मेरे ज़हन से क्यूं नहीं निकलती है।।
मैं तो अब हवा से भी नाराज़ हूॅं कि,
वो उसकी ख़ुशबू फ़ैलाने क्यूॅं आती है।।
शिव प्रताप लोधी