पर्वत
विपत्ति से कभी भी वीर नहीं
केवल कायर ही घबराता है
वीर तो इसे चुनौती मान कर
भय को ही सदा दहलाता है
नभ को छू लेने की जिद्द में
तन कर जिसका शीश खड़ा हो
ऑंधी तूफानों का मन में
किंचित भय नहीं गड़ा हो
शांति का जो दूत है इस जग में
गंभीरता की भी यही मूरत है
घमंड नहीं कभी अपने पर इनको
यही तो इसकी सुंदर सूरत है
अपने तन से नदियाॅं निकाल
धरती को भी जो नहलाता है
वही अचल अटल पत्थर तन
हरदम पर्वत ही कहलाता है