पर्यावरण
पर्यावरण
प्रकृति है मातु हमारा
पुरूष पिता भगवान
क्या समझेंगे मुरख जन
पर्यावरण का सम्मान।।
करके नष्ट पर्यावरण को
अपनी मौत बुलाते हैं
अपने हाथों से काट काट
जंगल परआग लगातेहैं।
चारों ओर से घेर हमें
अंग रक्षक बतलाते हैं
पर्यावरण प्राण हमारा
प्राण प्रिय कहलाते हैं।
परि बन कर साथ निभाते
वरण हमे कर लेते हैं
पर्यावरण का नाम है सुंदर
सुख शांति भर देते हैं।
जल,वायु, अग्नि धरा
जंगल और आकाश
सबन मिल रक्षा करत
चंद्र, सूर्य करत प्रकाश
सगुन सकार ब्रम्ह बन
सृष्टि जगत पर आते हैं
समझ न पाये मुरख जन
अपनी मौत बुलाते हैं।
अब कर रही रूदन
धरा देश की
बहा रही हैं नीर
क्या जानें मुरख विजय
पर्यावरण का पीर।
महाप्रलय की वस्तुस्थिति
पर्यावरण ही बनाते है
पर्यावरण गर ठीक रहा
तो सुख शांति बरसाते हैं।
करके नष्ट पर्यावरण को
अपनी मौत बुलाते हैं।
डां, विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग