पर्यावरण प्रतिभाग
बोला एक बीज एक दिन
क्या मुझे मिट्टी में बोओगे !
तुम तो व्यस्त हो लगते….
क्या जमीन पर बिखेरोगे !
समय नही?कोई बात नही….
मैं खुद ही उग आऊंगा !
मैं तब फिर क्या तुम्हारी
देख-रेख खाद-पानी पाऊंगा !
तुम जल्दी में हो लगते….
खैर, अब मैं बडा़ हो गया !
हरी-भरी पत्ती डालिया
अपनी जड़ों से खड़ा हो गया !
तुम आते-जाते फूल-फल
तोड़कर खाते,ले जाते
फलने-फूलने बाद फिर भी
मैं खुशी से फूले ना समाया !
तुम धूप,गर्मी खाये हो लगते…
आओ देता हूं ठंडी छाया !
मैं,मेरे पत्ते-टहनिया कटती
क्या तुम इसको रोकोगे !
आरी कुल्हाड़ी वालो को
क्या तुम कभी टोकोगे ?
अरे तुम सो गए हो लगते….
प्रदूषित हवा फेफड़ों में भरते !
ना जाने कितनी ही
बीमारियों से हो लड़ते !
क्या अब पर्यावरण बचायेगें
ऑस-पास पेड़ लगाएंगे !
प्रकृति,पृथ्वी संवारने
जन-जन को जगाएगे !
वाह ! तुम जागे हुए हो लगते….
धरती के भी भाग जाग गए !
पर्यावरण दिवस के दिन
नई पहल में प्रतिभाग किए !
~०~
मौलिक एंव स्वरचित: कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-२४, जीवनसवारो,जून २०२३.