पर्यावरण दिवस-एक समझौता इस पृथ्वी से
पर्यावरण दिवस-एक समझौता इस पृथ्वी से
लेखक :-विकास सैनी
पर्यावरण -हमारी पृथ्वी ना कितनी विभिन्न परस्थितियों से गुजरी तक जाकर मानव रूपी जीव का जन्म हुआ । विभिन्न वातावरण होते हुऐ भी हमारी पृथ्वी मानव के रहन सहन के लिऐ लगातार ख़ुद को बदलती रही,शायद उसे स्नेह था इस मानव रूपी जीव से । इस पृथ्वी ने मानव के लिऐ अपना आन्तरिक आकार बदला ,अपने में समाई नदियों का आकार बदला, अपनी जीवन रेखा वनों का भी आकार बदला । जैसे जैसे मानव की आकांक्षाओं ने विस्तार किया, वैसे वैसे पृथ्वी ने अपनी आशाओं का अंत किया। मानव यही नहीं रुकने वाला था ,वो अपनी अपेक्षा के लिऐ पृथ्वी को भी चीर दिया । नदियों ,तालाबों से जब उसकी प्यास ना बुझी तो इस पृथ्वी में छेद कर दिया । ख़ुद को और अपने आवरण में पल रही प्रत्येक वस्तु, जीव को सुरक्षित रखने के लिऐ ,सूर्य के ऊर्जा का संयोजन बनाने के लिऐ गैस रूपी आकाशीय सुरक्षा बनाई परंतु मानव की आकांक्षाओं ने उसे भी तोड़ दिया । मानव ने अपने विकास के लिऐ ना जाने पृथ्वी के गहने रूपी वनों कितना काटा, फिर भी वो सहती रही । आज भी मानव उस पृथ्वी को काट रहा है, नदियों को मोड़ रहा, उसमें जहर घोल रहा है । फिर भी उसकी अपेक्षा अभी भी बढ़ती जा रही है ।आज जब मानव संपूर्ण पृथ्वी पर अपने मन मुताबिक कार्य कर रहा है तो पृथ्वी कुछ हलचल कर रही है । पृथ्वी की हल चल से मानव भयभीत है ।वो पृथ्वी के इस कंपन को मापता है । उसे अब पता चलता है वो क्या कर रहा है इस पृथ्वी के साथ, इस वातावरण के साथ और अपने साथ ।कोरोना महामारी जैसी बीमारी आने पर उसी औषधि रूपी पृथ्वी से अपने उपचार क़ा प्रयत्न करता और कंही न कंही वो पूर्णतया सफल भी हो जाता है । अपने फेफड़ो को जब जीवन रूपी आक्सीजन के आवश्कता होती है तो वो पर्यावरण में मौजूद अन्य गैसो को छोड़कर सिर्फ अपने लिऐ आवश्यक गैस को स्टोर कर लेता और मारामारी करता है । फिर भी वो अभी तक सचेत नही हुआ । मनुष्य कि एक मानसिकता है कि हम तो अपना जीवन गुजार लेंगे हमको पर्यावरण से क्या लेना देना । गलती ज्ञात होने पर मानव खुद के अस्तित्व को बचाने के लिऐ ख़ुद से समझौता करता है ।और वो समझौता “विश्व पर्यावरण दिवस ” कहलाता है । लाखों सालों से पृथ्वी कुरेदता रहा और अब जब संकट ख़ुद के अस्तित्व पर आया तो पर्यावरण दिवस के नाम पर पृथ्वी को धीरे धीरे कुरेदना है इस प्रकार के नियम बनाता है ।ये नियम पूर्ण रूप से 5जून 1974 को लागू हुऐ ,इसका मुख्य उद्देश्य यही था की अब हमें पृय्वी के संसाधनों का धीरे धीरे उपयोग करना ,उसमें छेड़छाड़ करना बंद नहीं करना है बल्कि ये सब धीरे धीरे करना है । हमें सड़क बनानी है तो पेड़ तो काटना ही पड़ेगा लेकिन नियम से कभी मामला कानूनी प्रक्रिया में रखेंगे तो कभी सालो तक सुझाव मांगते रहेंगे और अंततः पेड़ काट देंगे ।
आज पृथ्वी सुनामी, तूफान, चक्रवात ,महामारी नहीं ला रही है बल्कि हम ला रहे है । पृथ्वी का वातावरण अपना कार्य कर रहा है बस हमने उसका संतुलन बिगाड़ दिया है ।
जिस दिन पृथ्वी को हम अपनी अपेक्षाओं से स्वतंत्र कर देंगे, पृथ्वी को उसके मुताबिक कार्य करने देंगे, पृथ्वी के संसाधनों का दोहन बंद कर देंगे,जिस दिन पृथ्वी को बचाने के लिऐ कोई नियम नहीं होगा । जिस दिन हम अपने नियमो से पृथ्वी को बचाने क़ा प्रयास नही बल्कि पृथ्वी और पर्यावरण के नियमो से हम खुद को बदलेंगे । उस दिन होगा वास्तविक पर्यावरण दिवस ।
#लेखक
विकास सैनी
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