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20 May 2024 · 1 min read

पर्दा नशीन

परखी नज़रें उसकी,
जुबां के इल्म को भी परखा है,
अब परखना क्या है बाकी??
उस पर्दा नशीन का किरदार मानो दरिया कोई,
मेरा उतरना उस दरिये में , बस रह गया है बाकी।

अंतर है उसमे और मुझमे ,
जैसे छोर नदी के दो,
अंतर है उसकी बातो में, और मेरी बातो में ,
मानो कौए की का , और कोयल की कू ,
लेकिन यह अंतर ही है,
जो उसे और मुझे हम बनाता है,
मानो सेतु हो कोई जो जोड़ रहा दो किनारों को।

हर्फ – हर्फ लिखूँ उसे मैं,
सुबह-शाम करूँ उसका ही ज़िक्र मैं,
मेरी हर इबादत में शुमार वो,
पाक कर दे जो रूह को मेरी,
ऐसा एहसास वो,
बेबुनियादी सा ही सही
पर सबसे हसीन ख्वाब वो।

हम शायरों का ढंग भी बड़ा बेमिसाल होता है,
अगर हो जाए इश्क हमें किसी से,
तो उनका नाम हर महफिल में शुमार होता है,
और जो हो जाए इश्क किसी को हमसे ,
तो उनकी हर दुआ में हमारा नाम होता है,
हाँ , है मिज़ाज थोड़ा शर्मीला हमारा भी
ज़िक्र करके उनका नाम लिया नहीं जाता
बस मिज़ाज-ए-यार हम करते है बयां,
और वही हमारे यार की पहचान है बन जाता,
कई बार कुछ कहने से कतराते हैं,
लगाम ज़ुबान को, हाँ हम भी लगाते हैं।

❤️स्कंदा जोशी

Language: Hindi
25 Views
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