परेशानी भी हो परेशान ज़रा
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
मोड़ दे आँधियों का रूख
कर लहू को इतना सुर्ख़
देख तेरा होंसला
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
निस्तब्ध अँधियारे के बाद सहर
तीमीर के उस पार रोशनी का घर
उठ ! चिराग़ जला
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
कर मुक़ाबला मुसीबतों का
रख मस्तक को ऊँचा सदा
देख तेरा ज़लज़ला
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
भूल पुरानी बिसरी यादें
छोड़ टूटे विश्वास के टुकड़े
देख तेरा जज़्बा
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
कर अतीत का एक बार फिर विचार
सुनहरे पलों से भी होगा दीदार
दहका फिर कोई अंगारा
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
हर शह हो रोशन ऐसी मशाल जला
रखे सदियों तक ज़माना याद तुझे
ऐसी मिसाल बना
परेशानी भी हो परेशान ज़रा
मीनू लोढ़ा
स्वरचित व मौलिक