परिस्थिति और हम
गुमान ख़ुद पर, पर सब परिस्थितियों के सहारे हैं ,
अदना सा ख़ुद और ख़्वाहिशें बेहिसाब पाले हैं l
हवा जैसी चले, उसी दिशा बहने में, ही समझदारी,
मूरख, तू ,अपनी नाव की पाल, उल्टी दिशा में ताने है ।
अपने ग़मों रंज को अज़ीज़, अपना हमसफ़र मानों,
ख़ुशिया जब अपनी हैं ,तो क्यों लगते ग़म बेगाने हैं ।
अपने बुरे समय से बात करना,
वे खूब बातें करेंगे,
ये वो अच्छे समय नहीं हैं,
जो हर बात पर बहका करेंगे ।।
डा राजीव “सागरी”