परिवर्तन
नहीं फर्क पड़ता अब
तानो का उलाहनों का
शब्दों के बाणों का
रुठने और मनाने का।
नही सताती अब मुझे
मायके जाने की इच्छा
नही रुलाती अब मुझे
घर वालों की उपेक्षा।
नहीं घबराती अब मैं
अवसर न मिल पाने से
नही लड़खड़ाती अब मैं
बाज़ी हार जाने से।
बहुत हो चुका दूजों की
खातिर अब जीना-मरना
वही करूँ जो दिल चाहे
न दुनिया से कुछ लेना।
दिल मांगता है बस
अपना छोटा सा कोना
70 की फिल्में देखदेख
छिप -छिप जी भर के रोना।
बचपन की सखियों संग
कभी खूब बतियाना
बेसिरपैर की बातों पर
यूँ ही हँसते जाना।
मन करता है कुछ दिन
अब अपने लिए गुजारूं
कौन दुखी खुश कौन है
मैं न परवाह मारूँ।
जाने मेरे भीतर उठता
क्यूँ ये इतना शोर है !!
उम्र का नया पड़ाव है
या परिवर्तन का दौर है !!!.
***धीरजा शर्मा***