परिन्दे
टूटे हुए हम ऎसे परिन्दे है जिनकी न कोई कहानी हैं,
जीते हम तो मगर न मेरी कोई जिन्दगानी हैं,
जीत चुके हैं वो बाजी, फिर भी हम हारे हुए हैं,
गम में इतना टूट चुके हैं,खुशिया मेरे गम पर रोती,
जीवन का ऎ कैसा मोड़ है दर्द हमसे हैं शर्माती,
पग-पग चलता हूँ फिर भी न कोई हैं
मंजिल मेरी,
पल-पल याद में तेरे मरता न हैं कोई चाहत मेरी,
सुबह-शाम तुझको निहारु, फिर भी कोई रूप नही,
उगता सूरज आसमान में पर मुझपे हैं धुप नही,
कौन है अपना कौन पराया अब कोई उम्मीद नही,
जीता था मैं तेरे लिए अब मेरा कोई वजूद नही ,
जिन्दा हूँ की मुर्दा हूँ ऎभी हैं एहसास नही,
चिता है जलती रोज यहाँ पर कोई शमशान नही,
मन्दिर-मस्जिद बहुत बने’ न ही खुदा भगवान यहाँ
साँस-साँस में तू है बसी’तेरे सिवा कोई और कहाँ ,
साँसे भी कहती हैं छोड़ समुन्दर पार चलो,
नही हैं अपना कोई यहाँ’
अब अपने यार के पास चलो,,,
अब अपने यार के पास चलो,,,,,,,;