परिणय
परिणय
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सृष्टि के सृजनहारों का प्रेम सम्मिलन परिणय है ।
सात फेरों का गठबंधन नहीं,ये तो जन्मों का बंधन है।
साथ-साथ तय करने जो,जिंदगी का ये तनहां सफर ,
मिलन की उत्कंठा प्रतिक्षण,प्रेमातुर जब तन अंतस है।
प्यार, विश्वास एवं रिश्तों की दृढ़ता का ये उत्सव है।
हृदय से हृदय की बातें करता,तन मन जो आलिंगन है।
नयनों को मूक निमंत्रण देता ,वो बंधन है पावन अटूट ,
दाम्पत्य प्रेम बना रहे जीवन में ,प्रीत यदि अनुरंजन है।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०१/०६ /२०२२
ज्येष्ठ , शुक्ल पक्ष, द्वितीया ,बुधवार ।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201