परिकल्पना
बंद आंखों से एक , हीर को देखता हूं मैं ।
तेरे वादों में अपने, जमीर को देखता हूं मैं । ।
ताज – ओ- तख्त, रोशन -ए- बाहर का मौसम है ।
तेरी जुल्फों में अपनी , तक़दीर को देखता हूं मैं ।।
एक रोज चुरा ही लूंगा तेरे होंठो से प्यार की शबनम।
दिल का बादशाह हूं तुझमें अपनी,बेनज़ीर को देखता हूं मैं।।
रोशन -ए -चिराग हो जाते हैं , जाग जाती हैं उमंगे दिल में।
होंठो पे लिए मुस्कान जब भी तेरी, तस्वीर को देखता हूं मैं।।