परिंदे अपने बच्चों को, मगर उड़ना सिखाते हैं( हिंदी गजल)
परिंदे अपने बच्चों को, मगर उड़ना सिखाते हैं( हिंदी गजल)
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(1)
हमेशा से यही है रस्म, जो हम सब निभाते हैं
कमाते हैं यहीं पर सब, यहीं पर छोड़ जाते हैं
(2)
समय का इससे ज्यादा और, सद्उपयोग क्या होगा
चलो कुछ वक्त बूढ़ी मॉं के, कदमों में बिताते हैं
. . (3)
लगाकर ध्यान कुछ ऐसा ही, मैं महसूस करता हूॅं
स्वयं को जैसे बच्चे माँ के, आँचल में छिपाते हैं
(4)
गए जो छोड़कर दुनिया, जाने अब कहॉं पर हों
अभी भी याद आती है, चलो उनको बुलाते हैं
(5)
उन्हें मालूम है उड़कर, कभी वापस नहीं आते
परिंदे अपने बच्चों को, मगर उड़ना सिखाते हैं
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 9761 5451