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18 Mar 2022 · 1 min read

पराधीन पक्षी की सोच

पराधीन जब होती पक्षी
केज में हमेशा रहती कैद
खलक की सैर करना भी
चाहती रहती हर पल वो।

पराधीनता की दास्ता में
बंधी रहती हर वक्त यह
उसकी भी मत करती है
द्रुम पर झूले- झुलने के।

क्या करेगी पराधीन पक्षी ?
इसके भी पंख हर लम्हें में
नभ में उड़ान भरने के लिए
रहती होंगी कितनी व्याकुल।

कभी भी इनकी खुशियों को
दास्ता में बाँधकर न हम तोड़ें
इसके भी अरमान होते होंगे
आसमान की ऊंचाई छूने की।

इस पराधीन पक्षी को हम
दासता से करके मुक्त हम
खुली हवा में इन्हें भी हम
फिर से जीने प्रभुत्व दे हम ।

अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार

Language: Hindi
489 Views

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