पराधीन पक्षी की सोच
पराधीन जब होती पक्षी
केज में हमेशा रहती कैद
खलक की सैर करना भी
चाहती रहती हर पल वो।
पराधीनता की दास्ता में
बंधी रहती हर वक्त यह
उसकी भी मत करती है
द्रुम पर झूले- झुलने के।
क्या करेगी पराधीन पक्षी ?
इसके भी पंख हर लम्हें में
नभ में उड़ान भरने के लिए
रहती होंगी कितनी व्याकुल।
कभी भी इनकी खुशियों को
दास्ता में बाँधकर न हम तोड़ें
इसके भी अरमान होते होंगे
आसमान की ऊंचाई छूने की।
इस पराधीन पक्षी को हम
दासता से करके मुक्त हम
खुली हवा में इन्हें भी हम
फिर से जीने प्रभुत्व दे हम ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार