परहितार्थ हम जैसा करते सत्य उसी को:– जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट१२२)
कविता
———-+ परहितार्थ हम जैसा करते ,
सत्य उसी को कहा है जाता ।
धर्म| बहॉ पर| नहीं ,जहॉ पर| —
सत्य| नहीं होता उद् गाता ।।१ ।।
परम| पुरुष के लिए प्रेम| जो —
वही सत्य| में हुआ| प्रतिष्ठित ।
बाहर| कुछ हो , अंदर| कुछ हो ।
प्रेम नहीं होता सत्यापित| ।।२ ।।
हुआ| अपेक्षित ,आवश्यक है — सद् मारग पर तुमको चलना ।
परहिकार्थ जीवन यापन हो , सद् आचरण बनाये रखना ।।३ ।।
सुस्थिरप्रज्ञ तुम्हें रहना है ,घबराहट तुमसे घबराये ।
विजय तुम्हारी होगी निश्चित , चक्रव्यूह तुमसे चकराये ।।४!!
—- जितेंद्रकमलआनंद
शिव मूर्ति मंदिरकेपास , सॉई बिहार कालोनी, रामपुर