परशुराम जयंती
एक हाथ में धनुष विराजे, दूजे गरजे फरसा।
दैत्य कांप जाते थे पल में,करते जब शर वर्षा।
शिव के अनुनय भक्त निडर थे,पितृ भक्ति के पालक।
सीखे सारे अस्त्र-शस्त्र थे,जब थे केवल बालक।।
बहुतहिं बार मही को जिसने,क्षत्रि विहीन बनाया।
जन्मजात ब्राह्मण थे लेकिन, कर्म क्षत्रिय का पाया।।
पितृ आज्ञा का पालन करने,पी ली निष्ठुर हाला।
भाई सारे मार दिए थे,मां का बध कर डाला।।