परवान चढता प्यार
परवान चढता प्यार
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सूर्यास्त के साथ ही
रंगीन शाम ढल गई
संग साथ ले गई वो
हमारे हसीन सुपने
जो देखे,हम दोनों ने
चढते सूर्योदय के साथ
सुर्ख लाल लालिमा में
संजोये थे रंगीं अरमान
भानु की रोशनी समान
बढ़ रहे थे,उसी गति से
हमारे खिले खिले ख्वाब
मंद मंद मुस्कराते हुआ
निज नज़रों से शर्माते हुआ
बाँहों में बाँहें डाल कर
प्रेम के प्यासे पंछियों से
परस्पर गले मिलते हुए
और श्वेत चाँदी के तमगे सी
खिली खिली दोपहरी में
परवान चढता हमारा प्यार
भास्कर की तपी हुई किरणों सी
गर्म गर्म सांसों की गर्मी में
चोटियों पर जमी हुई हिम सा
पिंघलता हुआ प्रेम का लावा
और चलती हुई गर्म हवाओं में
हिलोरें खाती प्रेम भावनाएँ
तनअंदर की तपी अंगीठी में
भभकती हुई प्रेम वासनाएँ
ढलती हुई शांत और शालीन
शाम के साथ शिथिल और
कमोजर पड़ती प्रेम क्रियाएँ
मुरझाए हुए फूलों के समान
मायूस हो जाती हैं आशाएँ
नये दिन की नई प्रभात की
स्वर्णिम नई उम्मीद के साथ
नई कोंपलों से निकलते हुए
तरोताजा खिले फूलों समान
जीवन में पुनः खिलने के लिए
भरे हुए यौवन की भड़की हुई
प्रेम-भावनाएँ और क्रीड़ाएँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)