“परली पार”
मुझे तो ले चल परली पार,
तू मेरा कृष्णा, मैं तेरी राधे,
काहे की दरकार,
मुझे तो ले चल परली पार,
मुझे तो ले चल परली पार,
जग को छोड़ बैरागी हो गई,
साँझ – सवेरे तेरे प्यार में खो गई,
सुध – बुध खोयी, दीवानी हो गई,
ले इक तारा, मीरा हो गई,
तेरे चरणों की धूल में खो गई,
तू मेरा कृष्णा, मैं तेरी राधे,
काहे की दरकार,
मुझे तो ले चल परली पार,
दुनिया में रम न पाऊँ,
आठों पहर तुझे ही ध्याऊँ,
आँख खुले जब सामने पाऊँ,
तोहे निहार – निहार हर्षाऊँ,
तो पे मैं बलिहारी जाऊँ,
तू मेरा कृष्णा, मैं तेरी राधे,
काहे की दरकार,
मुझे तो ले चल परली पार,
अपनी गति नज़र न आवै,
बीच भँवर हिचकोले खावें,
दुनिया देखूँ हिया घबरावे,
रोग, शोक मोहे अति डर पावे,
डरपत – डरपत मैं तो हारी,
ले चल परली पार,
रे कान्हा काहे की दरकार,
मुझे तो ले चल परली पार,
नैनन में तेरे बस जाऊँ,
हृदय में मैं तेरे रम जाऊँ,
चन्दन बन भाल सज जाऊँ,
वैजयंती बन गले लग जाऊँ,
पायल बन पैर में छनकू,
बस इतनी सी अरदास,
मुझे तो ले चल परली पार,
रे कान्हा काहे की दरकार,
घट से जब प्राण बिसरे,
तेरा नाम कभी न बिसरे,
सामने तुम हो ओ मेरे कान्हा,
तेरे चरण हों मेरा ठिकाना,
चरणों से उठालो, हृदय में बसा लों,
इतनी सी अरदास,
“शकुन” को ले चल परली पार,
रे कान्हा काहे की दरकार।।