परम्परा
परम्परा
होता है विरोध
हर नवीन परिवर्तन का
दी जाती है दुहाई
परम्पराओं की
कहा जाता है अक्सर
करते रहे हैं निर्वहन
हमारे पूर्वज
इन परम्पराओं का
परम्पराओं के निर्वहन में
झेलते रहे कष्ट सदा
हमारे पूर्वज
अब और कष्ट क्यों
वैसे भी परम्परा तो
होती ही है
टूटने के लिए
-विनोद सिल्ला©