“परमार्थ”
“परमार्थ”
बहुत कुछ है, जो हमें औरों को देना है। क्या मानव उस बीज से गए-गुजरे हैं, जो स्वयं धरती की गोद में अर्पित होकर एक अंकुर को जनमता है- अपने जैसे लाखों बीज इस पृथ्वी को देने के लिए। नन्हा सा बीज का यह समर्पण हम सबको एक नई दृष्टि देता है।