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1 Sep 2020 · 9 min read

परमार्थ

कुछ दिन पहले डॉक्टर पंत के अस्पताल में श्री नारंग जी अपनी पार्किसंस की बीमारी अत्यधिक बढ़ जाने पर अपना उपचार करवाने हेतु एक प्राइवेट कमरा लेकर भर्ती हो गए थे ।यह एक ऐसी बीमारी होती है जिसे paralysis agitans अर्थात उलट फ़ालिज भी कहते हैं जिसमें रोगी के हाथ , पैर लकवे की तरह कमज़ोर होने के बजाए अकड़ जाते हैं तथा उनमें कंपन होता रहता है तथा इस रोग की पराकाष्ठा पर मरीज का चलना फिरना दूभर हो जाता है तथा लेटे – लेटे उसकी उसकी मांस पेशियां घुलने लगतीं हैं , शरीर अशक्त हो जाता है और अन्य अंगों में संक्रमण होने लगते हैं , इतना सब होने के बावजूद भी यह बीमारी अपने अंतिम चरणों में भी रोगी के मस्तिष्क , उसकी मनो भावनाओं , बौद्धिकता तथा उसकी कल्पनाशीलता को प्रभावित नहीं करती है ।
नारंग जी पिछले कुछ वर्षों से नियमित रूप से डॉक्टर पंत जी के इलाज में चल रहे थे तथा वे धीरे धीरे चल कर स्वयं को दिखाने आया करते थे इधर कुछ महीनों से उनकी बीमारी और बढ़ गई थी जिसके कारण उनका स्टाफ व्हील चेयर पर बैठा कर उन्हें दिखाने लाया करता था । डॉक्टर पंत जी की सलाह पर वे अपने को दिल्ली के बड़े-बड़े अस्पतालों में उच्चतम विशेषज्ञों से अपना निदान करा कर आ चुके थे पिछले कुछ हफ्तों से उनका चलना फिरना दूभर हो गया था तथा वे बिस्तर पर पड़े रहते थे । अभी कुछ दिनों से सम्भवतः फेफड़ों में संक्रमण जनित बुखार के कारण उन्हों ने खाट पकड़ ली थी जिसके कारण उनकी हालत और गंभीर हो गई थी ।
नारंग जी ने कभी डॉक्टर पंत को बताया था कि उनके दो बच्चे हैं एक बेटा एक बेटी उनका बेटा कनाडा में जाकर बस गया है वहां उसने अपने जीवन यापन के लिए तीन तंदूर लगा रक्खे हैं तथा उनकी बेटी विवाह के उपरांत ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस गई है । वे हिंदुस्तान – पाकिस्तान के बंटवारे के समय बलूचिस्तान से पलायन कर भारतवर्ष में आए थे तथा एक शरणार्थी कैंप में उनका विवाह उनकी पत्नी से जो उस समय उनसे उम्र में 10 वर्ष बड़ी थीं से हुआ था और लगभग 10 वर्ष पहले प्राकृतिक कारणों से रोग ग्रस्त होकर वे उन्हें अकेला छोड़ इस इस जगत से विदा ले चुकी थीं ।इस शहर में आ कर बसने के लिए उन्होंने शुरुआत में रेलवे स्टेशन के करीब एक ढाबा खोला था और फिर जैसे जैसे सफलता मिलती गई वे अपना वयवसाय बढ़ाते गए और फिर धीरे धीरे अपने ढाबे के आस पास की ज़मीन ख़रीद कर उन्होंने होटल बनवाया और उसे आधुनिक वर्तमान स्वरूप दिया ।उनके पास अपने उपचार के लिए धन की कोई कमी नहीं थी , शहर में उनका प्रतिष्ठित होटल अच्छा चलता था ।
उनका उपचार करने में लगे डॉ पन्त जी जो पथ्य उन्हें बताते थे वह खाना उनके होटल से बनकर आ जाता था । होटल के बैरे बहुत साफ-सुथरी ट्रे में चिकन सूप कभी टोमेटो सूप कभी दलिया खिचड़ी जिसमें उनकी रूचि के अनुसार ड्राई फ्रूट्स आदि भी पड़े होते थे , बड़े सलीके से एक ट्रे पर कपड़ा बिछाकर और उसे ढक स्वक्छ सुंदर बर्तनों में लेकर के आते थे तथा उनको उनके बिस्तर का सिरहाना ऊपर कर उनको तौलिये का बिब लगाकर बहुत अच्छे ढंग से खिला कर जाया करते थे । इस क्रम में कोई कोताही नहीं बरती जाती थी तथा जैसा भोजन वह बताते थे या पंत जी सलाह देते थे तुरंत उनके होटल की पैंट्री से बनकर आ जाता था । अपने अस्पताल के प्रवास की अवधि में वे कभी कभी डॉक्टर पन्त जी से धीरे धीरे बोल कर अपनी अंतरंग बातें किया करते थे । पन्त जी भी जानते थे कि वे मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से सजग हैं ।
कुछ दिनों बाद डॉ पंत जी को अपने अधीनस्थों से पता चला कि उनका बेटा एवं बेटी क्रमशः कनाडा और आस्ट्रेलिया से उनको देखने आए हैं । राउंड पर जब डॉक्टर पन्त उनके निजी वार्ड में पहुंचे तो उन्होंने पाया कि उनकी बेटी विदेशी परिधानों में लिपटी अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर धरे उनके बिस्तर के एक ओर खड़ी थी , पूरा कमरा विदेशी परफ्यूम की सुगंध से गमक रहा था तथा बिस्तर के दूसरी ओर उनका जवान बेटा एक खूबसूरत सूट पहनकर अपनी जेबों में हाथ डाले खड़ा था । उनके खड़े होने के हावभाव से डॉ पंत समझ गए थे कि इन दोनों में आपस में लड़ाई है , इनकी एक दूसरे से बोलचाल बंद है और ये आपस में एक दूसरे की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करते हों गे । बिस्तर के किनारे कुछ देर वे लोग इसी प्रकार खड़े रहे । पन्त जी ने उनके बच्चों को उनके पिता के गम्भीर एवम आसाध्य रोग , शिथिल तन और चेतन मन की स्तिथियाँ को स्पष्ट रूप से बताया तथा किस प्रकार उनकी देख भाल उनकी देख रेख में चल रही है । उनकी सम्पन्न आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उनकी देखभाल के किये चौबीसों घण्टे उनके अस्पताल में कार्यरत उनके कर्मचारियों के अलावा फिजियोथेरेपिस्ट , उनके लिए विशेष तौर पर नियुक्त 8 घण्टे की ड्यूटी वाली तीन निजी नर्सेज एवम उनके डायपर , कपड़े आदि बदलने के लिये अस्पताल के सहयोगियों के साथ मिल कर उनके निजी सेवक रमेश के द्वारा की जा रही है ।
उसी समय उनकी बेटी ने देखा कि उनके बिस्तर पर एक चींटी चल रही थी उनकी बेटी ने कमर पर से बिना अपना हाथ हटाये अपनी कोहनी के इशारे से स्टाफ नर्स को बताया कि यह देखिए बिस्तर पर चींटी चल रही है इसे हटा दीजिए । स्टाफ नर्स ने चुटकी से पकड़ कर उस चींटी को हटा दिया , फिर कमरे में hit का स्प्रे करवा कर सुगन्धित फिनायल का पोंछा लगवाने को बोल दिया ।इस बीच वह कमर पर हाथ रखे वैसे ही मौन खड़ी रही , और उन दोनों भाई बहनों ने आपस में कोई बात – चीत नहीं करी । वे कुछ देर और अपने पिताजी की ओर देखते रहे और फिर बिना उनका कोई स्पर्श किये वे वार्ड से बाहर आ गये ।
तब तक पंत जी अपने कमरे में कक्ष में आकर बैठ चुके थे ।
इसके बाद नारंग जी का बेटा और बेटी डॉ पंत जी के कक्ष में अपने पिताजी का हाल जानने के लिए अलग-अलग हो कर पहुंचे । पंत जी ने दोनों को समझाया कि उनके पिताजी की बीमारी अपने अंतिम चरणों में है तथा उनकी जान को खतरा है , दवाइयां असर नहीं कर रहीं हैं । इस पर उनके बच्चों ने डॉक्टर पंत जी से कहा हम इतनी दूर से उनको देखने आए हैं वह इस समय होश में है , खा – पी भी लेते हैं लेकिन उन्होंने हमें देख कर अपने चेहरे पर कोई भाव या प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की , न ही हमारे अभिवादन का कोई उत्तर दिया । इस पर पंत जी ने उन दोनों बच्चों को समझाया कि माना कि ये इस समय आपकी बातों के प्रति अपने शरीर से कोई भाव प्रकट नहीं कर रहे हैं पर दिमागी रूप से यह स्वस्थ हैं और इनकी भावनाएं , विचार और बौद्धिकता इनके अंदर पूर्ण रूप से सक्रिय है यदि आप लोग इनके सामने आपस में अच्छा व्यवहार दिखाएंगे तो वे इस बात को समझ सकेंगे । उनका भावहीन , मुखौटे समान चेहरा उनकी बीमारी का हिस्सा है । उनके व्यवहार से आप यह न समझें कि वे आपकी बात समझ नहीं पा रहे हैं इनकी बुद्धि निर्णय लेने में पूर्णतया सक्षम है , यदि आप लोग उनके ऊपर बिना रोष प्रगट किये समय दे कर और धैर्य के साथ उनसे व्यवहार करेंगे तो वे अवश्य ही अपनी भावनाएं आपको प्रगट कर सकेंगे ।इस बात पर वे लोग समय का अभाव और अपनी व्यव्सत्ताओं को जताते हुए उन्होंने अपनी वापसी हवाई यात्रा टिकट के बारे में पंत जी को बताते हुए अपने लौटने का अपना भावी कार्यक्रम बता दिया ।
उनके प्रस्थान के बाद नारंग जी का उपचार उनके प्राइवेट वार्ड के कमरे में लेटे लेटे सुचारू रूप से चलता रहा । उनके वार्ड के कमरे में लगी बड़ी सी खिड़की बाहर खुले आकाश में खुलती थी , नारंग जी इस अवस्था मे अपने बिस्तर पर लेटे लेते उस खिड़की के बाहर नीलगगन में उड़ते बादल एवम उड़ते पंक्षियों को घण्टों देखा करते थे । जीवन पर्यंत नारंग जी बहुत नियम पूर्वक रहते थे वे सुबह जल्दी उठकर अपने पूरे होटल और उसके एक – एक कोने का चक्कर काटते तथा उसकी व्यवस्था को दुरुस्त करते थे फिर पास में स्थित एक उद्यान में अपनी मित्र मंडली के बीच प्रातः भृमण पर निकल जाते थे । उनकी आदत से हर कोई परिचित था । इसी प्रकार एक दिन शायद उसी बिस्तर पर लेटे – लेटे , सुबह – सुबह उनकी आंख खुल गई तथा अपने ख्यालों में खोये से वे आसमान की ओर देखते हुए उठ कर अपनी पुरानी तेज़ गति वाली चाल से चलते हुए सीधे सब से पहले अपने होटल में पहुंच गए और रिसेप्शन क्षेत्र पार करते हुए उसके रेस्तरां , पेंट्री , लॉन्ड्री , रसोई का मुआयना करते हुए हमेशा की तरह लिफ्ट का प्रयोग न करते हुए विभिन्न मन्ज़िलों के बरामदों और कमरों का निरीक्षण करते हुए सीधे होटल की छत पर खुले आकाश के नीचे स्थित पानी की टंकियों के पास पहुंच गए और वहाँ गगन में उड़ते पखेरुओं के साथ वे भी उड़ने लगे ।
बिस्तर पर लेटे उनकी अधखुली आंखें अभी भी खिड़की के बाहर आकाश की ओर निहार रही थीं । ड्यूटी पर उपस्थित चिकित्सक द्वारा उनको मृत घोषित कर दिया गया तथा जिसकी सूचना डॉ पंत जी ने तुरंत उनके बच्चों को ईमेल एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधनों द्वारा भेज दी ।शहर में यह खबर तुरंत फैल गई कि नारंग जी का स्वर्गवास हो चुका है , यह सुनते ही उनके कुछ इष्ट मित्र वहां एकत्रित हो गए । उनके वार्ड में स्थित एक अलमारी को वे हमेशा ताला बंद करवा कर रखते थे । सभी लोगों को उत्सुकता थी कि इनकी इस अलमारी में क्या है ?उनके बच्चे भी डॉक्टर पंत जी से कह गए थे कि वे अपनी वसीयत के बारे में उन लोगों को कुछ भी नहीं बता पा रहे हैं अतः जैसा हो हमें सूचित कीजिएगा । अब कुछ लोग उनके उस अलमारी में बंद सामान को निकालने के लिए चाभी की खोज में इधर-उधर भटकने लगे ।सारा कमरा छान लिया गया , होटल में स्थित जिस कमरे में वो रहा करते थे वहां भी दो-तीन लोग जाकर टटोल कर ख़ाली हाथ आ गए लेकिन उस अलमारी की चाभी कहीं नहीं मिली । इस बीच कुछ लोगों का विचार था कि ताले को तोड़ कर देखना चाहिए कि इस अलमारी में क्या है ? जब यह चर्चा चल रही थी तब वहीं खड़ा होटल का एक बैरा रमेश जोकि नारंग जी की हाल की बीमारी के अंतिम समय में व्यक्तिगत रूप से उनकी साफ-सफाई , करवट दिलाना आदि में लगा रहता था , ने आगे बढ़ कर बिस्तर पर पड़े नारंग जी के निष्चल शव के डायपर को खोलकर उसमें छुपी एक चाबी निकालकर सबके सामने रख दी । यह उसी अलमारी की चाभी थी । अब डॉक्टर पंत जी की उपस्थिति में उस अलमारी को खोला दिया गया वहां एक वसीयत रखी थी । शहर के गणमान्य व्यक्तियों एवं पंत जी की उपस्थिति में बनाने वाले वकील को बुलवाकर वसीयत पढ़ी गई । नारंग जी उसमें लिख गए थे
‘ वे अपनी सारी चल अचल संपत्ति को परमार्थ के नाम और उद्देश्य से एक न्यास गठित करके उसे सौंप रहे हैं जिसमें डॉक्टर पंत जी एक सदस्य हैं तथा जिनके साथ उनके प्रातः भृमण पर पर मिलने वाले अन्य चार मित्रों के भी नाम थे । अपनी वसीयत में उन्होंने लिखा था कि उनके होटल को उनके द्वारा गठित न्यास के प्रबंधन में इसी प्रकार से चलने दिया जाए और उसके किसी कर्मचारी को ना निकाला जाए तथा होटल से होने वाली आय से उस पर होने वाले खर्चे निकाल कर बचे हुए लाभ की रकम को के लावारिस जनों की देखभाल के मद में खर्च किया जाए । ‘
कुछ ही देर में उनकी मृत्यु एवं अंतिम इक्छा की सूचना इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्राप्त कर अपनी लाचारी दिखाते हुए उनके पुत्र एवम पुत्री ने अपनी मंशा जतला दी
‘इतने अल्प समय में उन लोगों का भारतवर्ष पहुंचना संभव नहीं अतः उनकी अन्तयेष्टि उनके द्वारा गठित न्यास द्वारा करवा दी जाए । उनकी मृत्यु के पश्चात के विशेष अनुष्ठान वे विदेश में ही रह कर सम्पन्न कर लें गे ।’
कालांतर में नारंग जी के अंतिम दिनों में उनकी करीब से सेवा करने वाला रमेश भी लापता हो गया , सुना है कि उसने कहीं कुमाऊं मंडल में जाकर किसी पहाड़ी हाईवे की ढलान पर एक अपना ढाबा चलाना शुरू कर दिया है।
ॐ हरि ।

Language: Hindi
Tag: लेख
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