*”परछाई”*
परछाई
खुद की परछाई देख ये प्रश्न उमड़ आया ,
क्यों कभी उजली तन कभी श्यामल काया।
कुंठित मन दुखी हो श्याम वर्ण सी काया,
मन प्रसन्न हो तब निखरी उजली सुंदर काया।
खुद की परछाई देख जब ये मन भरमाया ,
कभी अच्छी तो कभी बुरी नजरों की साया।
पलकें बंद सुंदर नयन नक्श देख क्यों इठलाया,
उजली तन बदन शांत नीरस श्यामल सी काया।
अंतर्मन से ढूंढ लिया जब निर्मल मन की काया ,
रूप निखर कर सामने साक्षी भाव जब आया।
उम्र के पड़ाव में थक चुकी जब धूमिल काया,
उजला तन मन पलकों में शुभ्र रंग की छाया।
परछाई देख जब नारी के मन को उकसाया,
दर्पण देख असली चेहरा सामने उभर आया।
शुद्ध साक्षी भाव से उजली सुंदर रूप माया,
काले गोरे का भाव पूर्ण समझ में आया।
असली चेहरा सामने साक्षी भाव से ,
उजली तन सुंदर काया,
नकली चेहरा पीछे अंतर्मन से,
श्यामल रूप दिखलाया।
शशिकला व्यास शिल्पी✍️