पदोन्नति
कमलादेवी आज सोच रही थी- शासकीय सेवकों की तरह स्त्रियाँ भी पदोन्नति प्राप्त करती हैं। जब तक पिता के घर में थी, हर तरह से स्वतंत्र थी। पढ़ती थी, घूमती थी, खाती थी। लेकिन जिम्मेदारी का कोई बोझ न था। शायद वह बेरोजगारी का काल था, जीवन का स्वर्णिम दौर था।
जब ब्याह कर ससुराल आई तो बहू रानी यानी गृहलक्ष्मी बन गई, जो नौकरी की शुरुआत थी। माँ बनी तो दायित्व बढ़े। समय चक्र कभी रुकता नहीं। फिर एक दिन सास बन गई यानी घर, परिवार और समाज की नजरों में बुजुर्ग महिला। कुछ समय और गुजरा,,,, और आज मैं घर की आया हूँ। अन्य शब्दों में कामवाली बाई।
जरा आप भी सोचकर बताइए ना, यह समयबद्ध पदोन्नति नहीं तो और क्या है? इस पदोन्नति में अगर कुछ नहीं है तो वह है- ‘सुख’, और यदि कुछ है तो वह है- ‘वेदना’।
मेरी प्रकाशित 34वीं कृति :
‘ककहरा’- लघुकथा-संग्रह (दलहा, भाग- 5)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।