पथ
मुझे बुलाता है
हंसाता है
रुलाता है
मगर मंजिल तक ले जाता है
मैं सो रहा हूँ या जागा
मगर मंजिल से नहीं भागा
मेरे तन-मन का है जो धागा
मुझे जोड़ कर रखता है
मेरा ईमान मुझे परखता है
नित नए व्यूह जो रचता है
मुझमें ही शायद बसता है
मेरा यही पथ है।