#पथ-प्रदीप
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★ #पथ-प्रदीप ★
आज मानवजीवन की अवनति का प्रमुख कारण है साहित्य की उपेक्षा। मेरे अपने जीवन में जो भी सुख, शांति है उसके मूल में मेरा लेखन नहीं अपितु पढ़ना है। आज भी अवसर पाते ही कुछ-न-कुछ पढ़ने की इच्छा मन में जग जाती है। मैंने विभिन्न विषयों की पुस्तकें पढ़ी हैं। एक समय मेरे पास लगभग डेढ़ हज़ार पुस्तकें थीं। इस उक्ति पर विश्वास धरते हुए कि “ज्ञान बाँटने से बढ़ता है”, जब भी किसी ने मुझसे कोई पुस्तक माँगी मैंने तुरंत दे दी। परंतु, आज मेरे पास गिनती की कुछ पुस्तकें ही बची हैं।
एक बार एक मित्र आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी का उपन्यास ‘उदयास्त’ मांगकर ले गए। जिसे मैंने अभी पढ़ा नहीं था। उसी समय डाक द्वारा आया ही था। कुछ दिन बाद वो मित्र उपन्यास लौटाने आए और कहा कि कोई दूसरा ‘नॉवेल’ दे दूँ। मैं उनकी रुचि जानता था इसलिए मैंने पूछा कि आपने ‘उदयास्त’ पढ़ लिया? तो उनका उत्तर था कि “तभी तो इतने दिन लगे”।
जब मैंने उपन्यास पढ़ना आरंभ किया तो देखा कि कई सारे पृष्ठ जिल्द बांधते समय कटने से छूट गए थे अर्थात आपस में जुड़े हुए थे। ऐसे पाठक भी हुआ करते थे।
युवावस्था में पढ़ी गई श्री राजेन्द्रसिंह बेदी की कहानी ‘बब्बल’ ने मेरे जीवन की दिशा निर्धारित करने में अमूल्य योगदान किया। सादर प्रणाम करता हूँ “श्री राजेन्द्रसिंह बेदी” जी की पुण्य स्मृतियों को। उनकी कई कहानियों पर फिल्में बनीं। मुझे ‘दस्तक’ और ‘एक चादर मैली सी’ बहुत अच्छी लगीं।
क्या आज कोई लेखक उनके जैसा लिख रहा है? आपको जानकारी हो तो बताएं?
धन्यवाद !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२