पथ प्रदर्शक
पथ प्रदर्शक
ज्ञानी जनों से सुना है
जाना है और समझा भी।
जरूरत है सभी को यहां
दिखाएं हमें अपनी सही और
सच्ची राह।
देखो जरा पथिक मेरे
अचल अडिग खड़े
तेज प्रकाश से जगमगाते
प्रकाश स्तंभ को ही।
दिखाता है दूर से ही मार्ग
भटकने नहीं देता किसी भी
राह खोजते हुए जहाज़ को।
वही जहाज जो अथाह सागर में
पथ प्रदर्शक की करता है तलाश।
मिले नहीं अगर प्रकाशस्तंभ तो
भटक जाएगा कहीं से कहीं।
जीवन में भी मनुज के
ईश्वर होता है प्रकाश स्तंभ
भटकने से बचाने के लिए
अथाह संसार सागर में।
देते हैं जो ध्यान उस पर
हो जाते हैं वही भव से पार।
जो नहीं देते ध्यान
वही यहां पर भटकते रह जाते हैं।
अनन्त काल से
चला आ रहा है यही क्रम।
भटकने से बचाने वाला है खड़ा
बस देते रहना उस पर ध्यान।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली