पथ नहीं होता सरल
** गीतिका **
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रह नहीं सकता अधिक क्षण ताश का सुन्दर महल।
है कठिन जब जिन्दगी तो पथ नहीं होता सरल।
चाहतें ऊंची बहुत जब हो सबल आधार भी।
साथ इसके है जरूरी हौंसला भी हो अटल।
प्रीत के संसार का कुछ मूल्य हो सकता नहीं।
किन्तु सब कुछ हो गया है अर्थ ही क्यों आजकल।
जब हवा में टिक नहीं पाते भवन हैं ताश के।
स्वप्न मिथ्या देखकर भी मन कभी जाता बहल।
खिल उठेगी जिन्दगी जब तुम मुहब्बत का सिला दो।
छोड़ कर मतभेद सारे दो कदम तो साथ चल।
छोड़ कर सारा बड़प्पन सब हकीकत में जिएं।
जिस तरह कीचड़ भरे तालाब में खिलते कमल।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०९/०८/२०२३