पथिक
राह में तुम ऐ पथिक,
क्यों खड़े ऐसे व्यथित।
क्या तुम्हारी मंजिलें
दूर है तुमसे खड़ी,
या तुम्हारी राह में
मुश्किलें भी हैं बड़ी।
क्यों तुम्हारी चाल में
ये थकावट आ गयी,
क्या तुम्हारे जोश में
भी गिरावट आ गयी।
राह में तुम ऐ पथिक,
क्यों खड़े ऐसे व्यथित।
दूर हैं तुमसे बहुत
मंजिले ये सोंच लो,
राह है कितनी कठिन
मन मे अपने तोल लो।
जीत की प्रतिमूर्ति थे तुम,
क्यो गये हो रूक मगर,
होगी तेरी ही हँसी
छोड़ दो तुम पथ अगर।
राह में तुम ऐ पथिक,
क्यो खड़े ऐसे व्यथित।
क्यों तुम्हारे नेत्र में,
दिख रही गहराइयाँ,
और क्यों चेहरे पे तेरे
उड़ रही ये हवाइयाँ।
मन मे है विश्वास तो,
कुछ नही कठिनाइयाँ,
त्याग दो अपनी निराशा
छोड़ दो तनहाइयाँ।
राह में तुम ऐ पथिक
क्यों खड़े ऐसे व्यथित।
तूने ही ये प्रण किया था
मै विजय हो आऊँगा,
देखकर अपनी सफलता
मै बहुत इतराऊँगा।
एक छोटी सी पराजय
से तू हिम्मत कर,
क्यों यहाँ आँसू बहाता
है तू सब कुछ त्याग कर।
राह में तुम ऐ पथिक,
क्यो खड़े ऐसे व्यथित।
कुछ भी तेरा हो मगर
सोच न यूँ बैठकर,
उठ खड़ा हो छोड़ चिन्ता
अपने आँसू पोछकर।
जो हुआ वह भूल जा,
न यहाँ अफसोस कर,
हो सकेगा तू सफल फिर
बस जरा सा प्रयास कर।
राह में तुम ऐ पथिक,
क्यो खड़े ऐसे व्यथित।
कुछ भी हों बाधाये फिर भी
वो दिवस भी आयेंगा,
तू विजय सम्राट बनकर
गर्व से इतरायेगा।
इसलिये तुम ऐ पथिक,
न रहो ऐसे व्यथित।