पथिक आओ ना
बंद दरवाजा
हौले हौले से
खुल रहा है
उसके पीछे से
झांकती प्रतीक्षारत
दो व्याकुल आँखे
कह रही है
पथिक आओ ना
तुम्हारे साथ बैठकर
कुछ सुख दुःख
बाँटना चाहती हू
बिना कोई उम्मीद के
निश्छल कविता सुनना
और सुनाना चाहती हूँ
सूखे ह्रदय में पल्ल्वित
प्रेम के पौधे को
सींच जाओ ना
पथिक आओ ना
तुम तो सब जानते हो
जानकर भी खुद को अनजान
क्यों मानते हो
विरह की वेदना को समझो
बिन कहे को जान जाओ ना
पथिक आओ ना