पथिका छन्द, प्रथम प्रयास
पथिका छन्द, प्रथम प्रयास
दर्द पग-पग पर मिले हैं।
आज किसी से मुझे शिकायत, और उनसे ही गिले हैं।
दिल में मेरे जख्म भरें पर, बाहर से मुस्काता हूँ।
अपनी व्यथित कहानी को, फिर से मैं दर्शाता हूँ।
आज सब अपना गंवाकर, सिर्फ अब तो कर मले है।
कर्म का मुझको सदा ही, मिल रहे उसके सिले हैं।
अदम्य