*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम : धर्म पथ
अंक 47, सितंबर 2022 प्रकाशक : उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन, थियोसॉफिकल सोसायटी संपादक : डॉ शिव कुमार पांडेय मोबाइल 79 0551 5803
सह संपादक : प्रीति तिवारी मोबाइल 831 890 0811
संपर्क : उमा शंकर पांडेय मोबाइल 94519 93170
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समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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थियोसॉफिकल सोसायटी का मुखपत्र धर्मपथ अंक सैंतालीस मेरे समक्ष है। 52 पृष्ठ की यह पत्रिका वास्तव में अध्यात्म ज्ञान की मंजूषा कही जा सकती है । कवर आकर्षक है। मुख पृष्ठ पर अमर प्रेम को दर्शाने वाले राजहंस पक्षी के एक जोड़े को चित्रित किया गया है, जो कि जोड़ा बनाकर रहने और प्रेम करने के लिए विख्यात है । पत्रिका में मुखपृष्ठ को “अमर प्रेम: लाल फ्लैमिंगो युगल” कहकर रेखांकित किया गया है।
सितंबर 2022 का यह अंक मृत्यु, पुनर्जन्म, व्यक्ति की भीतरी संकल्प शक्ति और इन सब के द्वारा क्या-क्या परिणाम देखने में आ सकते हैं, इस बात को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण अंक है।
मृत्यु और थियोसॉफिस्ट शीर्षक से मेरी एंडरसन के लेख का हिंदी अनुवाद रामपुर निवासी श्री हरिओम अग्रवाल द्वारा किया गया है । इसमें जे. कृष्णमूर्ति के कथन को उद्धृत करते हुए बताया गया है कि क्या हम संसार को ऐसा स्थान बनाने में योगदान करते हैं जिस में रहने के लिए हम स्वयं और अपने प्रिय जनों को रखना पसंद करते हों? उस समय जब हम और वे लौटकर उस संसार में रहने को आऍं। लेखक ने इस बात को इंगित किया है कि मृत्यु और जन्म बार-बार घटित होने वाली घटनाएं मात्र हैं। हमें फिर से इसी संसार में लौटना होगा, अतः यह उचित ही रहेगा कि हम इसे ज्यादा बेहतर बनाने का प्रयत्न करें ।(प्रष्ठ 5)
श्री हरिओम अग्रवाल, रामपुर द्वारा अनुवादित एक अन्य लेख अमूर्त रूप निर्माण और संकल्प द्वारा उसकी भौतिक प्रस्तुति शीर्षक से प्रकाशित हुआ है । लेखक पाब्लो डी.सेंडर हैं । इसमें विचारों की शक्ति को दर्शाया गया है । साधारण-सी बात बताते हुए लेखक कहते हैं कि जब हमारे मस्तिष्क में अपने हाथ को उठाने का विचार आता है, तो पहले हम यह इच्छा करते हैं । तब उसके बाद हाथ को गति प्रदान करने के लिए साथ-साथ होने वाली रासायनिक क्रियाएं और विद्युत क्रियाशीलता उत्पन्न होती है। मस्तिष्क जिसे देखा छुआ भी नहीं जा सकता है, वह किस प्रकार उस आंगिक गतिशीलता को उत्पन्न कर देता है । यह क्रिया संपन्न होती है, जिसके द्वारा जिसे हम संकल्प कहते हैं ।(पृष्ठ 11)
की. सुब्बा राव को उद्धृत करते हुए लेख में कहा गया है कि यह विचार की रहस्यात्मक शक्ति है, जो अपनी किसी अंतर्निहित शक्ति के द्वारा बाहरी ओर प्रत्यक्ष और दिखते हुए प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता रखती है ।पुरातन लोगों का विश्वास था कि यदि कोई अपना ध्यान किसी विचार पर गहराई से केंद्रित कर देता है तो वह विचार बाहरी रूप से स्वयं को अभिव्यक्त करेगा ।(पृष्ठ 11)
विचार की शक्ति के बारे में लेख आगे बताता है कि प्रत्येक मानव-कल्पना में रूप-निर्माण की लचीली शक्ति होने के कारण अपनी कल्पना के द्वारा यदि यह विकसित हो गई हो तो वह सृजन करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।( प्रष्ठ 12 )
मैडम ब्लैवेट्स्की को उद्धृत करते हुए लेख कहता है कि “कल्पना कोई हवाई किले बनाना नहीं है, यह अमूर्त रूप उत्पन्न करने की एक विधा है । हमें स्पष्ट रूप कल्पित करने में सारी चिंतन प्रक्रिया केंद्रित करना होता है और फिर पदार्थ को उस रूप का अनुसरण करने की आज्ञा देना होता है ।”(पृष्ठ 13)
पुनर्जन्म हमेशा से उत्सुकता का विषय रहा है । पुनर्जन्म की अवधि और संख्या शीर्षक से पत्रिका में मौलिक लेख श्री शिव कुमार पांडेय (सचिव उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन एवं नेशनल लेक्चरर) द्वारा प्रस्तुत किया गया है । इसमें बताया गया है कि मैडम ब्लैवेट्स्की के अनुसार दो जीवन के बीच की अवधि सामान्यतया 1000 से 1500 वर्ष होती है । जितना अधिक व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रौढ़ता, उतना अधिक विश्राम। लेख का अंत इस विचार के साथ हुआ है कि “पुनर्जन्म मानने से हमें यह निश्चय हो जाता है कि आज हम चाहे जितना नीचे स्तर पर क्यों न हों, पर विकास करते-करते हम कल वहां पहुंच जाएंगे जहां आज हमारे गुरुदेव या महात्मा गण हैं।”( पृष्ठ 31)
शिमला में क्या हुआ ? -यह उत्सुकता से भरा हुआ एक लेख है जिसका अनुवाद ओल्ड डायरी लीव्स पुस्तक से श्री श्याम सिंह चौहान (प्रेसिडेंट चौहान लॉज, कानपुर) ने किया है। इस लेख में 1880 के दौरान शिमला में मैडम ब्लैवेट्स्की के प्रवास के दौरान उनके द्वारा दिखाए गए चमत्कारों का वर्णन किया गया है । इन चमत्कारों को मैडम ब्लैवेट्स्की के साथ महत्वपूर्ण व्यक्तियों के समूह में प्रदर्शित किया गया था ।
एक चमत्कार लिफाफे के अंदर रखे हुए पत्र के बारे में था। मैडम लेविंस्की ने पत्र को कुछ क्षणों के लिए अपने माथे पर रखा और हंसने लगी । अरे यह अजीब है -वह बोलीं और फिर कुछ ही देर में उन्होंने बता दिया कि यह किसका पत्र है ।
एक अन्य चमत्कार बालों के पिन को जिसमें मोती जड़े हुए थे, मैडम ब्लैवेट्स्की ने एक महिला के कहने पर मिस्टर ह्यूम के बगीचे में पेड़ों के नीचे से ढूंढ कर निकलवा दिया । यह भी कुछ कम आश्चर्यजनक बात नहीं थी।
इसी तरह महंगी अंगूठी के पत्थर जैसा ही एक दूसरा पत्थर उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से गर्म पानी के भीतर से निकालकर दिखला दिया। ( पृष्ठ 38 )
एक अन्य चमत्कार शिमला में मैडम ब्लैवेट्स्की ने यह दिखाया कि उन्होंने एक तकिए के भीतर से जो कि मजबूती के साथ सिला हुआ था, एक पत्र और एक वस्तु निकालकर दिखला दी । यह चमत्कार कैसे हुए ?-यह कहना तो कठिन है,लेकिन इसका संबंध संभवतः उसी विचार और संकल्प की शक्ति में निहित जान पड़ता है जो कुछ ही व्यक्तियों के भीतर जागृत हो पाती हैं । मैडम ब्लैवेट्स्की उनमें से एक थीं।
पत्रिका के अंत में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में थियोसॉफिकल सोसायटी की विविध गतिविधियों का संक्षिप्त लेखा-जोखा दिया गया है ।
अच्छी पत्रिका के प्रकाशन के लिए संपादक डॉ शिव कुमार पांडेय तथा सह संपादक प्रीति तिवारी बधाई के पात्र हैं । ऐसी पत्रिकाएं जो विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक चेतना को जगाने के लिए तथा व्यक्ति को अपने भीतर सात्विक आचार-विचार अपनाने के लिए प्रेरित करती हों, समाज में कम ही प्रकाशित होती हैं । धर्मपथ उनमें से एक है।