पत्नी (दोहावली)
पत्नी पर दोहावली
होती पत्नी है सदा , जीवन में वरदान |
उसके बिन सूना लगे, जैसे सब वीरान ||
घर में पत्नी देखिए, मिलते रूप अनेक |
दादी अम्मा -मात की , रखती दिल में रेख ||
है बुजुर्ग वह गेह में , मीठी रखती डाट |
बड़ी समस्या सामने , पत्नी सोचे काट ||
आती पत्नी सामने , यदि पति का अपमान |
अवसर जब ऐसा मिले , दे सकती है जान ||
रौद्र रूप धारण करे , बने शीतला मात |
कभी प्यार शृंगार से , पत्नी करे प्रभात ||
भिड़ जाती यमराज से , बन सावित्री रूप |
पत्नी रानी रूप ले , पति को समझे भूप ||
पतिव्रता पत्नी सदा , रखती तेज प्रचंड |
हरता जो भी मान है , उसको देती दंड ||
घर में प्यार दुलार पर , पत्नी का अधिकार |
जीवन में रंगीन है , उसका शुचि शृंगार ||
कुछ हास्य मनोविनोद
बड़ी तपस्या से मिले , पत्नी नखरे बाज |
रखो समस्या गेह में , रहे गुप्त यह राज ||
पत्नी जब तक प्रेमिका , शक्कर -सा है प्रेम |
जिस दिन बनती मालकिन, बज उठता है गेम ||
सुबह शाम बस देखिए , दिखे प्रेमिका ओज |
शेष समय पत्नी तनी , चिक-चिक करती रोज ||
सपने में आती रहे , देकर जो मुस्कान |
बनकर पत्नी गेह में , लाती है तूफान ||
पत्नी जब तक प्रेमिका , हम सब है गुलफाम |
पर जोरू के एक दिन , बनते सभी गुलाम ||
जिसको उपमा में लिखा , पुष्पों की मकरंद |
जिस दिन पत्नी बन गई , सभी बिसरते छंद ||
चाँद सितारे तोड़ता , देकर जो आबाज |
वह पत्नी आदेश. पर , छीला करता प्याज ||
पहले चिट्ठी में लगे , पत्नी है ब्रम्हांड |
बिना पढ़े अब लें समझ , होगी कौन डिमांड ||
दोहे लिखे विनोद यह , पत्नी घर की शान |
कह सुभाष मानो उसे , जीवन में शुभ गान ||
पत्नी का सानिध्य है , ग्रीष्म ऋतु में शीत |
शीत काल में ग्रीष्म है , सदा तुम्हारी मीत ||
सुभाष सिंघई , जतारा