पत्नी जब चैतन्य,तभी है मृदुल वसंत।
( मुक्त छंद)
जाया, सो गई रेल में, यात्रा हुई अनाथ ।
बातों के बिन मन बना, निर्धन की फुटपाथ।।
निर्धन की फुटपाथ,समस्या दिल की दूनी।
पुनि जल गई है उर में, मौका पाकर धूनी।।
कह “नायक”कविराय, त्रिया बिन मनुआँ संत।
पत्नी जब चैतन्य, तभी है मृदुल वसंत।।
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जाया =पत्नी
●उक्त मुक्त छंद को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण में पृष्ठ संख्या 81पर पढ़ा जा सकता है।
●”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक