“पत्थर”
“पत्थर”
यूँ तो पत्थर कभी पिघलता नहीं,
मगर वो कभी बदलता नहीं।
गिर गए जो खुद की नज़र से,
वो शख्स कभी सम्हलता नहीं।
“पत्थर”
यूँ तो पत्थर कभी पिघलता नहीं,
मगर वो कभी बदलता नहीं।
गिर गए जो खुद की नज़र से,
वो शख्स कभी सम्हलता नहीं।